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वकीलों के काले कोट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, जानें क्या है पूरा मामला

jantaserishta.com
27 May 2024 9:50 AM GMT
वकीलों के काले कोट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, जानें क्या है पूरा मामला
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सांकेतिक तस्वीर

कहा गया है कि अदालत सभी राज्यों के बार काउंसिल को इस संबंध में आदेश दे।
नई दिल्ली: काला कोट वकीलों की पहचान माना जाता है, लेकिन गर्मी में यह रंग न पहनने की सलाह दी जाती है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें गर्मियों के दौरान वकीलों के ड्रेस कोड में राहत देने की अपील की गई है। इसके तहत मांग गई है कि वकीलों को गर्मियों के दिनों काला कोट न पहनने की छूट दी जाए। याचिका में अदालत से मांग की गई है कि एडवोकेट ऐक्ट, 1961 के नियमों में संशोधन किया जाए। इससे वकीलों को गर्मी के दिनों में काला कोट पहनने से राहत मिल सकेगी।
याचिका में कहा गया है कि अदालत सभी राज्यों के बार काउंसिल को इस संबंध में आदेश दे। इसके तहत उन महीनों की सूची तैयार की जाए, जब काला कोट पहनना गर्मी के चलते मुश्किल भरा हो सकता है। अर्जी में कहा गया है कि गर्मी के दिनों में भी काला कोट पहनने से होने वाले नुकसान के अध्ययन के लिए एक कमेटी का भी गठन किया जाए, जिसमें मेडिकल एक्सपर्ट्स हों। याची ने कहा कि इस बात की स्टडी तो होनी ही चाहिए कि कैसे गर्मी के दिनों में काला कोट पहनने से सेहत, कार्य क्षमता पर विपरीत असर पड़ सकता है।
एडवोकेट शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने बेंच से अपील की है कि परंपरागत ड्रेस कोड के नियमों में छूट दी जाए। इसकी वजह यह है कि देश के मैदानी इलाकों में गर्मी के दिनों में तापमान बहुत ऊपर चला जाता है। ऐसा लगातार कई महीनों तक होता है और उस स्थिति में काला कोट पहनना मुश्किल भरा होता है। याची ने कहा कि काला कोट पहनने की परंपरा ब्रिटिश दौर से जुड़ी हुई है, लेकिन यह हमारे लिए सही नहीं है। याची ने कहा कि ब्रिटेन के मौसम की परिस्थिति अलग थी और हमारे यहां माहौल दूसरा होता है। इसलिए गर्मी के दिनों में ऐसी ड्रेस पहनना ठीक नहं है।
याची ने कहा कि काला रंग गर्मी को आकर्षित करता है। इसकी वजह से गर्मी से वकीलों को तपना पड़ता है और उससे उनकी कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सभी को अधिकार है कि वह सुरक्षित माहौल में काम कर सके। वकीलों को मोटे काले कोटों का पहनना मुश्किल भरा होता है। इससे उनके लिए कामकाज की स्थिति असुरक्षित और मुश्किल भरी होती है। यह असुविधाजनक है। इससे सुरक्षित वर्कप्लेस का अधिकार भी प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि जो लोग पहले ही किसी बीमारी का शिकार हैं, उनके लिए तो यह और मुश्किल भरा हो सकता है।
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